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kansya ki murti

कांस्य की नर्तकी की मूर्ति

  • मोहनजोदारो से प्राप्त यह मूर्ति विश्व की सबसे प्राचीन कांसे की मूर्ति है
  • माना जाता है कि इसे 2500 ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया होगा।
  • इस विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा में एक नर्तकी को नृत्यक के बाद मानो खड़े होकर आराम करते दर्शाया गया है ।
  • यद्यपि यह मूर्ति नृत्य मुद्रा में नहीं है फिर भी ‘नर्तकी’ इसलिये कहा गया क्योंकि इसकी सजावट से लगता है कि इसका व्यवसाय नृत्य होगा।
  • बाएं हाथ में चूड़ियां और दाएं हाथ में कंगन और ताबीज सम्मिलित हैं यह अपने कूल्हे पर दाहिने हाथ रखे हुए “त्रिभंग” नृत्य मुद्रा में खड़ी है
  • इसके बाएँ हाथ में संभवत: हड्डी या हाथी दांत से बनी अनेक चूडि़यां हैं जिनमें से कुछ इसके दाहिने हाथ में भी हैं
  • यह मूर्ति महज चार इंच की है और इस पर इतना बारीक काम किया हुआ जिसे देखकर आश्चर्य होता है कि 5000 साल पुरानी सभ्यता में भी मूर्तिकला कितनी विकसित थी।
  • कांसे की यह छोटी सी प्रतिमा सिंधु सभ्यता के बारे में दो अहम बातों की तरफ इशारा करती है – पहली तो यह है कि उस वक्त के कलाकार धातु के साथ काम करना जानते थे और यह सभ्यता इतनी विकसित थी कि वहां नृत्य जैसी कला के लिए भी ख़ासी जगह थी.
  • बताया जाता है कि पुरात्तत्वविद् जॉन मार्शल ने 1931 में इस प्रतिमा को शिव की मूर्ति बताया था लेकिन बाद में इतिहासकारों ने अलग अलग राय दी जिसमें कुछ ने इसे एक औरत की मूर्ति के रूप में देखा.
  • दक्षिणपंथी इतिहासवाद् का यह दावा है कि इस सभ्यता के लोग शिव के उपासक थे. साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने 2500 ईसा पूर्व की इस डांसिंग गर्लकी मूर्ति को हिंदू देवी पार्वती बताया है जो अपने आप में पहला दावा है.
  • जेएनयू की प्रोफेसर सुप्रीया वर्मा कहती है कि आज तक किसी भी पुरात्तत्वविद् ने डांसिंग गर्ल को देवी नहीं बताया, पार्वती तो छोड़ ही दीजिए. इस मूर्ति को हमेशा ही एक युवती की प्रतिमा की तरह ही देखा गया है.’ बताया जाता है कि पुरात्तत्वविद् जॉन मार्शल ने 1931 में इस प्रतिमा को शिव की मूर्ति बताया था लेकिन बाद में इतिहासकारों ने अलग अलग राय दी जिसमें कुछ ने इसे एक औरत की मूर्ति के रूप में देखा.
  • पाकिस्तान में एक वकील ने लाहौर उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि वह सरकार को भारत से मशहूर ‘डांसिंग गर्ल’ मूर्ति वापस लाने का निर्देश दे. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कांसे की यह प्राचीन मूर्ति मोहनजोदड़ो से निकली थी और दिल्ली की राष्ट्रीय कला परिषद के आग्रह पर प्रदर्शन के लिए करीब 60 साल पहले भारत भेजी गई थी. भारत ने बाद में उस मूर्ति को लौटाने से इंकार कर दिया.

तकनीक-लुप्त मोम विधि (cire perdue) कांस्य खांचे/ सांचे के लिए उपयोग किया जाता है सबसे पहले मोम के आकृतियों को मिट्टी के लेप से ढक दिया जाता है, फिर इसे सूखने दिया जाता था। फिर इसे गर्म किया जाता है और पिघले हुए मोम को मिट्टी की अवस्था के तल पर एक छोटे से छेद से बाहर निकाला जाता है। खोखला सांचा फिर पीतल या किसी अन्य धातु से भरा जाता है।  एक बार धातु ठंडा होने के बाद, मिट्टी को हटा दिया जाता है।

 

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